विजय शेखर शर्मा, 42 वर्ष, CEO, वन97 और पेटीएम (अगस्त 2010, नॉएडा, उत्तर प्रदेश ) को कौन नहीं जनता जिसने टेक्नोलॉजी और कॉमर्स का मेल कराकर शॉपिंग को बना दिया खेल। अब भारत को भ्रष्टाचार मुक्त और कैशलेस भारत बनाने का इरादा है लगभग डेढ़ दशक के अपने सफर में पेटीएम के प्रणेता ने नए जेनेरशन का कारोबार स्थापित किया है।
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पेटीएम सर्विस |
एक समय विजय शेखर जी के पास मारुती 800 हुआ करती थी औरवो खुद उसे ड्राइव भी थे। आज उनके पास क्या नहीं है अब वो बीएमडब्लू की हैं। काम को अपनी मस्ती, ख़ुशी और जोश मानने वाले विजय को सामान्य जिंदगी जीने में मज़ा आता है। उन्होंने वर्ष 2001 में मोबाइल वैल्यू एडेड कंपनी वन 97 की शुरुआत तीन लाख रुपये से की थी।लेकिन 2010 में ऑनलाइन वॉलेट पेटीएम का आइडिया आया और आज उनकी कंपनी 230 करोड़ USD की लगत की हो गई है।
विजय शेखर की बैकग्राउंड कारोबारी नहीं रही है, वे अलीगढ के एक बायोलॉजी टीचर के पुत्र है , छोटा शहर था तो पड़े तो ठीक-ठाक थी लेकिन इंग्लिश में थोड़े कमजोर थे , इंजीनियर बनने के लिए जब वे इंजिनीयरिंग की परीक्षा दीने दिल्ली आए तो उन्हें जो का झटका लगा. प्रश्न-पत्र इंग्लिश में था। लेकिन ऑब्जेक्टिव टाइप था इसलिए एग्जाम निकाल ले गए। उस समय तक यही लक्ष्य था कि कॉलेज हो जाए, हर विचार का एक समय होता है, उसी तरह उनका नियति से साक्षात्कार दिल्ली के दरिया गंज में लगने वाली किताबो की संडे मार्किट से हुआ। संडे मार्किट में उन्होंने कुछ किताबे और पत्रिकाएं खरीदीं, दुनिया के बारे में पता चला। वे कहते हैं , ” तब जाना की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी क्या होती है, एक अरब कितना होता है, धीरे-धीरे चाह पैदा हुई कि हम भी ऐसा कर सकते हैं,”
कॉलेज में रहते हुए उन्होंने एक्सम कॉर्प नाम की एक कंपनी बना ली थी। 1998 में उनकी पढ़ाई पूरी हुई तो उन्हें एक विदेशी कंपनी से एक्सम कॉर्प को खरीदने का मौका मिला। उसके बाद दो साल तक वे दिनेश और भारत में काम करते रहे। लेकिन 2001 में वन97 की स्थापना की। मुश्किलें तो अभी बाकि थी। 2004 – 05 की सर्दियां थी और पैसो की कमी की वजह से कंपनी परेशानी में थी। वे दोस्तों के घर पर रहने लगे, कई बार ऐसा हुआ की 12 रुपये में रात बितानी पड़ी थी। कभी सिर्फ कोक पीकर और बारबन बिस्कुट खाकर रहना पड़ता था।
लकिन विजय जी अपने मंत्र ” लगे रहो ” पर कायम रहे और 2010 तक उनकी कंपनी 100 करोड़ की हो चुकी थी।
उनके जिंदगी का अहम् मोड़ अक्टूबर, 2014 में उस समय आया जब उनकी मुलाकात ढाई सौ अरब डॉलर की कंपनी अलीबाबा के संस्थापक -चेयरमैन जैक मा से हुई।
शेखर जीबताते हैं , “हम पेटीएम बना चुके थे और उसके लिए फण्ड की जुगाड़ कर रहे थे। जब जैक मा से मिलने का मौका मिला तो यह किसी एग्जाम से काम नहीं था ” आधे घंटे की यह मुलाकात ढाई घंटे तक चलती रही। उनके लिए वह मौका हैरान कर देने वाला था।जब जैक मा समझने लगे की उन्हें पैसा उनकी कंपनी से ही लेना चाहिए। अच्छे इन्वेस्टर हैं लेकि मजेदार यह हुआ कि विजय जी को इस बात का यकीन नहीं हो रहा था, सो उन्होंने इस मौके की वॉइस रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। वे कहते हैं , ” मैंने सोचा, पैसे मिलें या न मिलें , पर यह तो याद रहेगा कि जैक मा ने मुझसे यह बात कही थी ” जब अच्छा निवेश मिल गया तो उन्होंने कंपनी को भरोसेमंद और एक्सपिरेशनल ब्रांड बनाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने ने टीम इंडिया को स्पोंसर काने की योजना बनाई तो बात निकली की यह कम से कम 200 करोड़ की लगत की होगी, उन्होंने ने 200 करोड़ पर दाव खेलने का मन बना लिया था । अब उनका नाम और लोगो खिलाड़िओ की जर्सी पर नजर आने लगा था।
पेटीएम को बनाते समय उनका फंडा था “जो बिग और जो होम ( या तो बड़े बन जाओ या बंद कर दो ). वे बताते हैं कि ऑनलाइन वॉयलेट सर्विस शुरू करते समय उनके पास दो ऑप्शन थे. या तो ग्राहको को 100 रु. पर 30 रु. की छूट दें या फिर 100 रु. की खरीदारी करने पर 30 रु. उनके वॉयलेट में वापस लौटा दें, विजय कहते हैं, “मैंने दूसरे विचार पर काम किया, हलाकि सब इसके खिलाफ थे, लेकिन मैं यह दांव खेलना चाहता था”।
इस तरह उन्होंने शॉपिंग को खेल बना दिया, आरबीआई ने पिछले 20 वर्षों में पेटीएम से पहले इस तरह के बिजनेस के लिए 30 से अधिक लाइसेंस दिए थे। लेकिन कोई भी कंपनी बड़ा नाम न बन सकी.
अब वे पेटीएम को बैंक में तब्दील करने की तयारी में थे उनकी तयारी देश के 50 करोड़ ऐसे लोगों तक बैंकिंग सुविधा पहुंचने की थी जो इससे महरूम हैं उनके बैंक को आरबीआई से मंजूरी मिल गई थी और ये 2016 में लांच कर दिए गए थे। यह एक मोबाइल बैंक है जो मैसेज करो और घर पर पैसा पाओ की तर्ज पे काम है।
अपनी सीएसआर पहल के तहत वे नेशनल हॉलिडे के दौरान पेटीएम के प्रॉफिट को चैरिटेबल आर्गेनाईजेशन में दान कर देती है जैसे 26 जनवरी का प्रॉफिट वो अक्सर आर्मी वाइफ वेलफेयर एसोसिएशन को दे दिया है।
एक जानकारी के मुताबित विजय के पेरेंट्स आज भी अलीगढ़ में रहते हैं और वे खुद ग्रेटर कैलाश में किराये के माकन में अपनी पत्नी मृदुला शर्मा के साथ रहते हैं। विजय नार्मल लाइफ जीना चाहते हैं दिखावे के बिलकुल खिलाफ हैं।
अपने एक टीवी को साक्षात्कार देते हुए उन्होंने कहा था कि “एक बिल्डर जिस प्रकार एक बड़ा बिल्डिंग बनता है ठीक उसी प्रकार सॉफ्टवेयर डेवेलपर (इंजीनियर) आप के ऑनलाइन वर्क को आसान अपने सॉफ्टवेयर से बना देते हैं।
विजय शेखर जी का मूल मंत्र “लगे रहो और बड़ा दाव खेलने से मत चूको “
विजय शेखर जी नए कारोबार करने वाले युवाओ और उद्यमियों के लिए एक प्रेणा के स्रोत हैं।
पेटीएम हेडक्वाटर: बी-121, सेक्टर -5, नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
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