छठ व्रत निःसंतान स्त्रियों को अवश्य करनी चाहिए

Chhath Festival

छठ व्रत : कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की षष्‍ठी से शुरू होने वाले इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्‍ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो कि इस बार 25 अक्टूबर 2025 को है। इस दिन घर में जो भी छठ का व्रत करने का संकल्‍प लेता है वह, स्‍नान करके साफ और नए वस्‍त्र धारण करता है। 26 अक्टूबर  खरना होगा और छठ पूजा का पर्व 27 अक्टूबर 2025 को मनाया जाने वाला है। और 28 अक्टूबर 2025 के दिन  इस महाव्रत का समापन हो जायेगा। सूर्य की उपासना का यह महाव्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। 

यह फेस्टिवल चार दिन तक चलता है। जिस किसी स्त्री को संतान से संबंधित कोई समस्या है, उसे यह व्रत अवश्य रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इतना ही नहीं मार्कण्डेय पुराण में तो इस बात का भी उल्लेख है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।

छठ का उल्लेख भारतीय महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। जब राम और सीता अयोध्या लौटे, तो लोगों ने दीपावली मनाई और उसके छठे दिन रामराज्य स्थापित हुआ। इस दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और माता सीता ने सूर्य षष्ठी और छठ पूजा की।

कौन है छठ मइया

प्राचीन मान्यता के मुताबिक छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को खुश करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है।

क्या सावधानी रखें इस व्रत में:

  •  छठ पूजा का व्रत अत्यंत सफाई और सात्विकता वाला होता है।
  •  इसमें सफाई का कठोर रूप से पालन किया जाता है।
  •  यदि घर में अगर एक भी व्यक्ति छठ का उपवास रखता है तो बाकी सभी लोगों को सात्विकता और स्वच्छता का पालन करना पड़ता है।

छठ व्रत कथा

प्राचीन काल में प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी, इस बात को लेकर वे बहुत दुखी थे। एक दिन उन्होंने संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के प्रताप से रानी मालिनी गर्भवती हो गईं। लेकिन जब नौ महीने बाद संतान प्राप्ति का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र हुआ। जब इस बात का पता राजा को चला तो वे मन ही मन बहुत दुखी हुए और उन्होंने आत्म हत्या करने का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं.

देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र रत्न का वरदान प्रदान करती हूं। उन्होंने कहा, जो लोग सच्चे भाव से मेरी पूजा करते है, मैं उनके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण करती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि को पूरे विधि -विधान से देवी षष्टी की पूजा की। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर मां षष्टी देवी ने उन्हें एक सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति करवाई। तभी कार्तिक शुक्ल की षष्ठी का छठ पर्व मनाया जाता है।

 

छठ व्रत 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। यह चार दिवसीय पर्व 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू होगा और 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के बाद पारण के साथ समाप्त होगा।
25 अक्टूबर 2025, शनिवार: नहाय-खाय

26 अक्टूबर 2025, रविवार: खरना

27 अक्टूबर 2025, सोमवार: संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य)

28 अक्टूबर 2025, मंगलवार: उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य) और पारण

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