लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा

Chhath Puja

भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता
है. षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है।नवरात्रि के दिन में हम षष्ठी माता की पूजा करते हैं षष्ठी माता कि पुजा घरपरिवार के सदस्यों के सभी सदस्यों के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं षष्ठी माता की पूजा, सुरज भगवान और मां गंगा की पूजा देश में एक लोकप्रिय पूजा है। यह प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार के कल्याण के लिए कीजाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। इस पुजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य हैं यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब कि साफ सफाई किया जाता है और नदी तालाब को सजाया जाता है प्राकृतिक सौंदर्य में गंगा मैया या नदी तालाब मुख्य स्थान है.

मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं।

छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्रीकृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली
पूजा सूर्य ने ही की थी।

छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य(तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।

छठ पर्व की शुरुआत

देव सूर्य मंदिर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। छठ पूजा एक पाखंड पूजा यानी अंध श्रद्धा भक्ति मात्र है, हिन्दू धर्म के पवित्र धर्मग्रंथो जैसे वेदों और गीता जी में इसका कहीं भी वर्णन नही है.

छठ पर्व का नामकरण कैसे हुआ?

छठ, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा।

 स्रोत : विकिपीडिया

महापर्व छठ पूजा 2025 कार्यक्रम

 छठ व्रत 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। यह चार दिवसीय पर्व 25 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू होगा और 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य के बाद पारण के साथ समाप्त होगा।

25 अक्टूबर, शनिवार: नहाय-खाय
26 अक्टूबर, रविवार: खरना
27 अक्टूबर, सोमवार: संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य)
28 अक्टूबर, मंगलवार: उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य) और पारण

1 thought on “लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top